हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,जैसे ही मोहर्रम का महीना आता है तो सारे मुसलमान यज़ीद को गालियाँ देने और उस पर लानतें करना शुरू हो जाते हैं (और ऐसा करना भी चाहिए, इसमें कोई शक भी नहीं है कि वह इसी क़ाबिल है) पर कभी किसी मुसलमान ने यह ध्यान दिया है या तारीख़े इस्लाम पर ग़ौर व फ़िक्र भी किया है कि आख़िर यज़ीद को इतनी ताक़त देने और तख़्ते ख़िलाफ़त पर बैठाने वाला कौन है?
आख़िर वह कौन है जो यज़ीद जैसे ज़ाहिर शराबी, ज़ानी और दीन ए मोहम्मद (स) के मुनकिर को मुसलमानों का ख़लीफ़ा बनाने के लिए लोगों से यज़ीद के नाम की बैअत लेने लगा और अपने तमाम गवर्नरों को इस काम में लगा दिया कि वह सब अपने अपने शहरों में यज़ीद मलऊन की बैअत लोगों से लेने लगें?
आइए देखते हैं कि किसने यज़ीद मलऊन को मुसलमानों का ख़लीफ़ा बनाया!
अहले सुन्नत की मशहूर किताब "अल मुस'तद'रक हाकिम" में हदीस नंबर 5853 में बयान हुआ है:
حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ مُصْلِحٍ الْفَقِيهُ بِالرِّيِّ، ثَنَا مَحْمُودُ بْنُ مُحَمَّدٍ الْوَاسِطِيُّ، ثَنَا وَهْبُ بْنُ بَقِيَّةَ، ثَنَا خَالِدٌ، عَنْ عَطَاءِ بْنِ السَّائِبِ، عَنْ مُحَارِبِ بْنِ دِثَارٍ، حَدَّثَنِي ابْنُ سَعِيدِ بْنُ زَيْدٍ، قَالَ: بَعَثَ مُعَاوِيَةُ إِلَى مَرْوَانَ بْنِ الْحَكَمِ بِالْمَدِينَةِ لِيُبَايِعَ لِابْنِهِ يَزِيدَ، وَسَعِيدُ بْنُ زَيْدِ بْنِ عَمْرِو بْنِ نُفَيْلٍ غَائِبٌ فَجَعَلَ يَنْتَظِرُهُ، فَقَالَ رَجُلٌ مِنْ أَهْلِ الشَّامِ لِمَرْوَانَ: مَا يَحْبِسُكَ؟ قَالَ: حَتَّى يَجِيءَ سَعِيدُ بْنُ زَيْدٍ، فَإِنَّهُ كَبِيرُ أَهْلِ الْمَدِينَةِ، فَإِذَا بَايَعَ بَايَعَ النَّاسُ، قَالَ: «فَأَبْطَأَ سَعِيدُ بْنُ زَيْدٍ حَتَّى أَخَذَ مَرْوَانُ الْبَيْعَةَ، وَأَمْسَكَ سَعِيدٌ عَنِ الْبَيْعَةِ»
[التعليق - من تلخيص الذهبي] 5853 - سكت عنه الذهبي في التلخيص
तर्जुमा: हज़रत सईद बिन ज़ैद के साहबज़ादे फ़रमाते हैं: मुआविया ने मरवान बिन हकम को मदीना भेजा ताकि उन के बेटे यज़ीद बिन मुआविया के लिए बैअत लें। सईद बिन ज़ैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल वहाँ मौजूद नहीं थे, मरवान बिन हकम उनका इंतेज़ार करने लगा, मुल्के शाम (सीरिया) के एक बाशिंदे ने मरवान से पूछा: तुम बैअत लेने क्यों रुके हुए हों? उसने कहा: मैं सईद बिन ज़ैद के आने का इंतेज़ार कर रहा हूँ, वह अहले मदीना में सबसे बुज़ुर्ग शख़्सियत हैं, जब वह बैअत कर लेंगे तो बाक़ी लोग भी आसानी से बैअत कर लेंगे। हज़रत सईद बिन ज़ैद ने बहुत देर कर दी, इंतेज़ार के बाद मरवान ने लोगों से बैअत ले ली और सईद बिन ज़ैद ने अपने आप को उस बैअत से बचा लिया।
अहले सुन्नत की सबसे बड़ी और मशहूर हदीस की किताब 'सहीह बुख़ारी' में हदीस नंबर 4827 में बयान हुआ है:
حَدَّثَنَا مُوسَى بْنُ إِسْمَاعِيلَ ، حَدَّثَنَا أَبُو عَوَانَةَ ، عَنْ أَبِي بِشْرٍ ، عَنْ يُوسُفَ بْنِ مَاهَكَ ، قَالَ : كَانَ مَرْوَانُ عَلَى الْحِجَازِ اسْتَعْمَلَهُ مُعَاوِيَةُ ، فَخَطَبَ ، فَجَعَلَ يَذْكُرُ يَزِيدَ بْنَ مُعَاوِيَةَ لِكَيْ يُبَايَعَ لَهُ بَعْدَ أَبِيهِ ، فَقَالَ لَهُ عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ أَبِي بَكْرٍ شَيْئًا ، فَقَالَ : خُذُوهُ ، فَدَخَلَ بَيْتَ عَائِشَةَ ، فَلَمْ يَقْدِرُوا ، فَقَالَ مَرْوَانُ : إِنَّ هَذَا الَّذِي أَنْزَلَ اللَّهُ فِيهِ وَالَّذِي قَالَ لِوَالِدَيْهِ أُفٍّ لَكُمَا أَتَعِدَانِنِي سورة الأحقاف آية 17 ، فَقَالَتْ عَائِشَةُ مِنْ وَرَاءِ الْحِجَابِ : مَا أَنْزَلَ اللَّهُ فِينَا شَيْئًا مِنَ الْقُرْآنِ إِلَّا أَنَّ اللَّهَ أَنْزَلَ عُذْرِي...
मरवान को मुआविया ने हिजाज़ (सऊदी) का अमीर (गवर्नर) बनाया था। उसने एक मौक़े पर ख़ुत्बा दिया और ख़ुत्बे में यज़ीद बिन मुआविया मलऊन का बार बार ज़िक्र किया ताकि उसके बाप (मुआविया) के बाद उस की लोग बैअत करें। इस पर अब्दुल रहमान बिन अबी बक्र (रज़ि) ने एतराज़ के तौर पर कुछ फ़रमाया। मरवान ने कहा: उसे पकड़ लो। अब्दुल रहमान अपनी बहन आयेशा (रज़ि) के घर में चले गए तो वह लोग पकड़ नहीं सके। इस पर मरवान बोला कि इसी शख़्स के बारे में क़ुरआन की यह आयत नाज़िल हुई थी:
والذي قال لوالديه أف لكما أتعدانني
''और जिस शख़्स ने अपने माँ बाप से कहा कि तुफ़ है तुम पर क्या तुम मुझे ख़बर देते हो।'' इस पर आयेशा (रज़ि) ने कहा कि हमारे (आले अबी बक्र के) बारे में अल्लाह तआला ने कोई आयत नाज़िल नहीं की बल्कि तोहमत से मेरी बराअत ज़रूर नाज़िल की थी।
अहले सुन्नत की इन दो बड़ी किताबों से मुतालेआ करने पर हमें पता चलता है कि अल्लाह के रसूल (स) के अहलेबैत (अ) का नबी ए पाक (स) की औलादों का क़ातिल यज़ीद मलऊन को मुसलमानों का ख़लीफ़ा बनाने की तैयारी यज़ीद के बाप यानी मुआविया इब्ने अबू सुफ़ियान ने अपनी हयात में ही कर ली थी जबकि वह अपने बेटे की इन सब करतूतों को अच्छे से जानता भी था।
उसके बावजूद भी मुआविया ने यज़ीद को मुसलमानों पर थोंप दिया जब कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने मुआविया के सुलह के पैग़ाम भेजने पर जो शर्तें रखी थीं उन में से एक शर्त यह भी थी कि मुआविया अपने बाद किसी को भी ख़िलाफ़त नहीं सौंपेगा बल्कि फिर यह ख़िलाफ़त अगर मैं (इमाम हसन अलैहिस्सलाम) ज़िंदा रहा तो मुझे वापस मिलेगी या अगर मैं इस दुनिया से चला गया तो मेरे भाई (इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम) इस ख़िलाफ़त के हक़दार होंगे...
लेकिन अपने इस वादे और अपनी सुलह की तमाम शर्तों को तोड़कर मुआविया इब्ने अबू सुफ़ियान ने अपने शराबी और ज़ानी और खुल्लम खुल्ला गुनाह अंजाम देने वाले बेटे यज़ीद मलऊन को मुसलमानों का ख़लीफ़ा बना दिया और उसका नतीजा सबने देखा कि किस बेदर्दी से यज़ीद ने रसूल अल्लाह (स) के ख़ानदान को क़त्ल कर दिया और यज़ीद मलऊन के ज़ुल्म यहीं ख़त्म नहीं हुए बल्कि करबला के क़त्लेआम के बाद फिर उसने मदीने में सहाबा ए किराम का क़त्लेआम करवाया और हज़ारों औरतों को ज़िनाए जब्र (बलात्कार) का शिकार बनाया और मस्जिद ए नबवी (स) में घोड़े बंधवाएं और इस यज़ीद मलऊन के ज़ुल्म व सितम यहीं ख़त्म नहीं हुए बल्कि उसके बाद उसने अल्लाह के घर खाना ए काबा को भी आग लगाकर नुक़सान पहुंचाया।
अब आप सब मुसलमान ख़ुद ही अपनी अक़्ल से फ़ैसला कीजिए कि इन सब बड़े बड़े ज़ुल्म व सितम का असली गुनाहगार और ख़ताकार कौन है!?
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